बेटी मेरी बड़ी हो गई  रोशन "अनुनाद"

बेटी मेरी बड़ी हो गई

रोशन "अनुनाद"

खुद पैरों पर खड़ी हो गई,
बेटी मेरी बड़ी हो गई।
 

बात-बात पर करती है गुस्सा,
कोई नहीं है प्यारा तुझ सा,
बिन तेरे मन जाए बुझ सा,
थोड़ी तो नकचढ़ी हो गई,
बेटी अब तो बड़ी हो गई।
 

छू तू अनंत गगन को नीले,
सपने देख सारे चमकीले,
जैसे जीना चाहे जी ले,
खुद पैरों पर जब खड़ी हो गई,
मेरी बेटी बड़ी हो गई।
 

हो गई है तू सयानी,
बन गयी है मेरी भी नानी,
मुझे सुनाती कई कहानी,
तू तो अब फुलझड़ी हो गई,
सचमुच अब तू बड़ी हो गई।
 

कामियाबी के स्वाद सब चखना,
लेकिन क़दम ज़मीं पर रखना,
भला-बुरा सब जाँच-परखना,
दुनिया में हड़बड़ी हो गई,
पर बेटी मेरी बड़ी हो गई।
 

तू है दूर गगन की छाँव में,
काँटा कोई लगे न पाँव में,
तेरी बलिहारी जाऊँ मैं,
खुशियों की तू लड़ी हो गई,
बेटी अब तू बड़ी हो गई।
 

तुझसे चाहती है कहना,
याद करती है तेरी बहना,
दूर नहीं चाहती है रहना,
पर सब पड़ता है सहना,
टिक-टिक तू अब घड़ी हो गई,
देखो कितनी बड़ी हो गई।
 

हम सब हैं तेरे अपने,
मिल कर देखे हैं सब सपने,
अपनी दुनिया नई मान कर,
भूल ना जाना ग़ैर जान कर,
चाहे कितनी बड़ी हो गई,
अपने पैरों पर खड़ी हो गई।

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