एक छोटी सी गुड़िया थी RATNA PANDEY
एक छोटी सी गुड़िया थी
RATNA PANDEYएक छोटी सी गुड़िया थी
गुड्डे गुड़ियों से खेला करती थी,
दिन भर फुदकती घर के अंदर
कोलाहल वह करती थी।
इधर-उधर से दौड़ती आकर
माँ की बाँहों में लिपटती थी,
रोज़ रात को माँ की बाँहों में
लोरी सुनकर वह सोती थी,
एक छोटी सी गुड़िया थी
गुड्डे गुड़ियों से खेला करती थी।
खुशियों से भरा परिवार था उसका
राजकुमारी सी वह रहती थी,
किन्तु एक दिन ऐसा आया
खुशियों को उनकी नज़र लग गई,
नन्हीं गुड़िया घर से गुम हो गई,
हैवानों की बंदिश में वह कैद हो गई।
दुर्घटना फिर ऐसी घटी
जिसका उसे ना अंदेशा था,
माँ की कहानियों में उसने
अक्सर अच्छा संदेशा ही सीखा था।
बेहरमों की क्रूरता से बेबस गुड़िया फिर टूट गई,
दर्द से कराहती बेबस गुड़िया
माँ को पुकारती रह गई,
अंत समय फिर निकट आ गया
ज़ालिमों की गिरफ्त से कोई उसे बचा ना पाया।
आँखें उसकी बन्द हो रही थीं
वह समझी वह सो रही थी,
सोते-सोते वह बोल रही थी
नहीं लिए माँ खिलौने इनके
ना ही इन्हें परेशान किया,
पता नहीं माँ इन्होंने मुझको
इतना क्यों हैरान किया।
बहुत डरावने लगते हैं माँ
इन्होंने बहुत मुझे सताया है,
लगता है माँ परियों की कहानी से
राक्षसों का समूह बाहर निकलकर आया है।
परी बनकर माँ जल्दी से तुम आ जाना,
परियों वाली डंडी माँ साथ में तुम लेकर आना,
फिर आबरा का डाबरा कहकर
इन राक्षसों को माँ तुम गिरा देना,
और मुझे साथ में लेकर माँ जल्दी से घर चले जाना।
ज़ालिमों का जब हाथ लगा
छोटी सी गुड़िया टूट गई,
बिना किसी गलती के ही
वह दुनिया को छोड़ गई,
एक छोटी सी गुड़िया थी
गुड्डे गुड़ियों से खेला करती थी।
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एक नन्हीं बच्ची के साथ हैवानियत करते लोग इस समाज में रहने के काबिल नहीं। अपनी माँ की गोद में लोरी सुनने वाली छोटी सी बच्ची अपनी माँ को बुलाती है कि माँ मुझे बचा लो, आप परी बनकर आ जाओ और इन राक्षसों को मार दो। अपनी कविता के माध्यम से मैंने यही भाव दिखाने का प्रयास किया है।