विसाल-ए-यार Rushi Bhatt
विसाल-ए-यार
Rushi Bhattजोड़े जब हमने हाथ तो वो पैर छूना समझ बैठे,
किया जब हमने इश्क़ तो वो मज़ाक समझ बैठे।
मानते हैं वो कि हम तो हैं मस्ती में चूर फकीर,
किया जब उन्होंने आदाब तो अपनी फकीरी खो बैठे।
हुआ जब सदियों बाद विसाल-ए-यार का वाक्या,
तो उस वाकये को भी हम तसव्वुर समझ बैठे।
आते थे जब तस्व्वुर में तो करते थे हमारी रातें हराम,
जब हुआ उनसे सामना तो पूरी शाम गुलज़ार कर बैठे।
कहते हैं काफिर को होता है दीदार बुतों में अहद का,
मिली जब उनसे जुदाई तब उनकी तस्वीर से भी सजदा कर बैठे।
मालूम हैं हमें कि होना नहीं कुछ इतनी ज़िल्लतों के बाद,
करते रहो इबादत उनकी तसव्वुर में बैठे बैठे।
आदाब - नमस्कार
विसाल-ए-यार - प्रियतम से मिलाप
तसव्वुर - कल्पना
काफिर - मूर्ति पूजन में विश्वास रखने वाले
बुत - मूर्ति
अहद - ईश्वर
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यह कविता हमारे ज़ेहन में तब आई जब मैं एक कार्यक्रम हमारे गुजराती भाषा के सबसे बड़े स्तम्भकार को सुनने गया था और उसमें मेरी वह दोस्त आई थी जिनके और हमारे बीच कुछ ग़लतफ़हमी हो गई थी। हमने भारतीय तरीके से नमस्ते किया और वो समझ बैठे कि हम माफी माँग रहे हैं। वो हँसे और हमारे रक्त में ऊर्जा का संचार हो गया। उनकी आँखों से कत्ल करने की जो अदा थी उसपर हम फिदा थे, उसी वक्त एक पंक्ति सूझी और हमने पूरी कविता रच दी।