ये भूल मेरी क्षन्तव्य नहीं  RAHUL MAHARSHI

ये भूल मेरी क्षन्तव्य नहीं

RAHUL MAHARSHI

वंदे हे वीर बलिदानी,
नमन तुम्हें ओ स्वतंत्रता सेनानी।
गृहस्थी तजी, घर बार तजा,
तज दिए सुख संसार सभी,
मेरे लिए हर अत्याचार सहा,
तज दिए अपने प्राण भी।
 

मैं लोभी, अधर्मी,अभिमानी,
अकृतज्ञ भुला कर तेरे त्याग,
ला पहुँचाया देश को जिस पथ
वो तेरा इष्ट गंतव्य नहीं,
ये भूल मेरी क्षन्तव्य नहीं,
ये भूल मेरी क्षन्तव्य नहीं।
 

भ्रष्ट मूल है, भ्रष्ट शिखा है,
भ्रष्ट वरक और शाखा है,
भ्रष्टाचार का कीर्तिमान है़,
विश्वविदित पताका है।
इस न्यून आचरण से ऊपर उठना
क्या मेरा ये कर्तव्य नहीं?
ये अधर्म मेरा क्षन्तव्य नहीं,
ये अधर्म मेरा क्षन्तव्य नहीं।
 

डसे दीनता दंश गड़ाए,
क्षुधा के मारे बालक बिलबिलाए,
लाचार वृद्ध बनें भिक्षुक,
कृषक काल के गाल समाए।
मैं धन-धान्य समृद्ध देखूँ,
बाह्य निज भवन-भव्य नहीं,
ये अन्याय मेरा क्षन्तव्य नहीं,
ये अन्याय मेरा क्षन्तव्य नहीं।
 

कहीं पर बाढ़, कहीं सुखाड़,
कहीं चक्रवात का है उजाड़,
वायु श्वास-अयोग्य हुई,
वनोन्मूलन की है छाप प्रगाढ़,
बैठा मैं वातानुकूल में,
मेरा ये मन्तव्य नहीं,
ये तांडव मेरा क्षन्तव्य नहीं,
ये तांडव मेरा क्षन्तव्य नहीं।
 

नारी-लाज का चीर हरण,
अपकर्ष समाज का यूँ हुआ,
शिशु तक ना अक्षत रहे
मानव चरित्र विकृत हुआ,
बना धृतराष्ट्र न देखूँ मैं,
मेरा कुछ वकतव्य नहीं,
ये पाप मेरा क्षन्तव्य नहीं,
ये पाप मेरा क्षन्तव्य नहीं।
 

प्राणप्रिय जिस भारत पे तुम
जान सदा लुटाते थे.
विश्व-गुरू, सोने की चिड़िया,
बनाने स्वयं को जलाते थे,
होता वहीं राष्ट्रीय चिह्नों का अपमान,
पर राष्ट्रघोष का मुझमें द्रव्य नहीं,
ये द्रोह मेरा क्षन्तव्य नहीं,
ये द्रोह मेरा क्षन्तव्य नहीं।

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