कुछ दोस्त कुछ सपनें  VIMAL KISHORE RANA

कुछ दोस्त कुछ सपनें

VIMAL KISHORE RANA

कुछ दोस्त कुछ सपने ही तो मेरे अपने हैं,
गर इनके पास ना जाऊँगा तो कौन किनारे जाऊँगा,
ए मीत तेरी खुशियाँ ही तो मेरी खुशियाँ हैं,
गर इनसे दूर मैं जाऊँगा तो कैसे खुश रह पाऊँगा।
 

कुछ दोस्त कुछ सपने ...
 

मुश्किल में मेरा विश्वास हो तुम,
तन्हा हूँ तो एहसास हो तुम,
संग जब भी मेरे रहते हो,
अपने हो यह आभास हो तुम।
आकाश मेरे जीवन का तुम,
विभास मेरे जीवन का तुम,
गर तुमसे न बतियाऊँगा,
तो कैसे मैं जी पाऊँगा।
 

कुछ दोस्त कुछ सपने ...
 

तन्हाई में, रुसवाई में,
जब तुमने मेरा साथ दिया,
महफ़िल से वीराने तक,
हर दम हाथों में हाथ दिया,
यह क्या कम था
कि तुमने हमको अपना सच्चा मित्र कहा,
गर तुमसे रूठ के जाऊँगा
तो कौन किनारे जाऊँगा।
 

कुछ दोस्त कुछ सपने ...
 

बस कुछ दिन हैं, इन लम्हों को
पिरो लें हम अपनी यादों में,
उस भीने-भीने मौसम में
उन भीगी सी बरसातों में,
अपना एक साया दे जाना,
हम बात करेंगे उनसे ही,
अपनी कुछ यादें दे जाना,
विभास करेंगे उनसे ही,
कल तुम कहाँ, कल हम कहाँ,
फिर कुछ नए मौसम आएँगे,
जो हमको पास बुलाएँगे,
उन लम्हों में खो जाऊँगा,
उन यादों से बतियाऊँगा।

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