खिला क्यों नहीं देते शशांक दुबे
खिला क्यों नहीं देते
शशांक दुबेमैं हिन्दू तू मुसलमां ये सिख वो ईसाई,
क्यों झगड़े आपस में जब हैं भाई-भाई,
सब का खून आपस में मिला क्यों नहीं देते?
उजड़े हुए गुलशन को खिला क्यों नहीं देते?
जो वतन की आन खातिर जान देते हैं,
मातृभूमि को जो ऐसा सम्मान देते हैं,
उनकी देशभक्ति को सिला क्यों नहीं देते?
उजड़े हुए गुलशन को खिला क्यों नहीं देते?
कहीं भगवा ही छाया है, कहीं हरा समाया है,
कहीं नीला, कहीं पीला रंग ये क्यों बिखराया है,
इन सब रंगों को आपस में मिला क्यों नहीं देते?
उजड़े हुए गुलशन को खिला क्यों नहीं देते?