घोड़ा क्यों उदास है?  रोशन "अनुनाद"

घोड़ा क्यों उदास है?

रोशन "अनुनाद"

अस्तबल में घोड़ा क्यों उदास है,
सामने रक्खी हरी-हरी घास है,
दान-पानी भी आस-पास है,
फिर भी घोड़ा उदास है।
 

बँधे होने की पीड़ा है?
घुड़दौड़ की चाहत है?
मालिक की बेरुख़ी से आहत है?
आख़िर किसकी तलाश है?
जो घोड़ा उदास है।
 

मन में कुछ चल रहा है?
कौन सा विचार पल रहा है?
कि नींद से अब जाग जाऊँ,
तोड़ बंधन भाग जाऊँ,
अस्तबल जैसे एक वनवास है,
आखिर घोड़ा क्यों उदास है?
 

खुदमुख्तार होना चाहता है,
खुद सपने सँजोना चाहता है,
ख़ुद हँसना-रोना चाहता है,
क्या मंज़िल की आस है?
जो इतना बदहवास है,
घोड़ा जाने क्यों उदास है।
 

मजबूत दो पैर तो हैं पर
मर्ज़ी से चल नहीं सकता,
अपना रास्ता अपना मक़ाम
ख़ुद से बदल नहीं सकता,
खुद का कोई भी अख्तियार
न जब खुद के पास है,
शायद घोड़ा इसलिए उदास है।
 

सारे बंधन तोड़ दूँ,
खुद को क़िस्मत पर छोड़ दूँ,
शायद किंकर्तव्यविमूढ़ है,
मसला कुछ ज्यादा गूढ़ है,
हालात से निराश है,
क्या इसीलिए घोड़ा उदास है?
 

अस्तबल की मत भीख ले,
ख़ुद से खाना सीख ले,
तंद्रा से तू जाग जा,
तोड़ के बंधन भाग जा,
खुला अनंत आकाश है,
सब कुछ तेरे पास है,
फिर क्यों तू उदास है?
 

बात तेरे आत्मबल की है,
तेरे उजले चमकीले कल की है,
मोहपाश में गर पड़ा रहेगा,
अस्तबल में ही खड़ा रहेगा,
क्या इसका तुझे अहसास है?
बेवजह ही उदास है।
 

तेरी अपनी ज़िन्दगी है,
अपना जीवन जी मर्जी से,
मालिक तेरा अपना सोचे,
तू भी सोच खुदगर्जी से,
थोड़ा अलग से तो सोच,
आने वाला मधुमास है,
विजय का आत्मविश्वास है।

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