विदाई Ravi Panwar
विदाई
Ravi Panwarतो चली, तो चली,
लो मैं चल पड़ी,
जाने की आ गई है अब घड़ी,
तो चली, तो चली, लो मैं चल पड़ी।
कब था मेरा वो घर जिसने पाला मुझे,
कब थी मेरी वो गालियाँ जिन्होंने निकाला मुझे,
आज आँखें मेरी आँसुओं की झड़ी,
तो चली, तो चली,
लो मैं चल पड़ी,
जाने की आ गई है अब घड़ी।
माँ कहूँ तुमको या सहेली मेरी,
मैं वही रंग-बिरंगी चूनर तेरी,
जिसके आँगन में नाज़ों से थी पली,
मैं हूँ बाबुल तेरी बगिया की वो कली,
ले रही करवटें ज़िन्दगी की कड़ी,
तो चली, तो चली,
लो मैं चल पड़ी,
जाने की आ गई है अब घड़ी।
पीछे फेंके हैं चावल चली जाऊँगी,
लौट कर अपने घर अब नहीं आऊँगी,
मेरे भाई तू भूल जाना मुझे,
बिन बातों के मैं तुझसे कितना लड़ी,
तो चली, तो चली,
लो मैं चल पड़ी,
जाने की आ गई है अब घड़ी।
छूटा जो है पीहर मुझको घर चाहिए,
दिल के कोने में कभी भी न डर चाहिए,
मैं तुझको मनाऊँ तू मुझको मनाए,
मुझको बस ऐसा एक हमसफ़र चाहिए,
हैं कितने सवाल और मैं अकेली खड़ी,
तो चली, तो चली,
लो मैं चल पड़ी,
जाने की आ गई है अब घड़ी।