मुझको किंचित स्वीकार नहीं ARCHIT SHARMA
मुझको किंचित स्वीकार नहीं
ARCHIT SHARMAस्वीकार मुझे हर राय तुम्हारी
स्वीकार तुम्हारा आवेदन,
स्वीकार नहीं पर अर्ध सत्य
या शब्दों का उदभेदन।
स्वीकार मुझे हर सत्य तुम्हारा
स्वीकार तुम्हारा व्यंग बाण,
स्वीकार नहीं पर तनिक चपलता
या तथ्यों का त्राण।
मेरे सम्मुख आए हो
तो बात सहजता से बोलो,
संकोच हृदय से दूर करो
अंतस का मुख खोलो।
अंतर्मन से परखो मुझको
मुझको न्यारा पाओगे,
यदि षड्यंत्रों का यत्न किया तो
खुद को हारा पाओगे।
ना विजयी बनूँ तो हार सही
प्रतिशोध सही प्रतिकार सही,
किन्तु तुम्हारा कायर होना
मुझको किंचित स्वीकार नहीं।