सर्वत्र हूँ Rushi Bhatt
सर्वत्र हूँ
Rushi Bhattमैं शब्द की श्वास हूँ, संगीत का उन्माद हूँ,
बौद्ध गया में हुआ खुद के साथ संवाद हूँ।
नहीं हूँ, न था, न रहूँगा, शाश्वत हूँ,
ब्रम्ह के मुख से हुआ ॐ कार का नाद हूँ।
छान्दोग्य का तत्वमसि और वेदों का नेति-नेति,
कृष्ण शिशुपाल के बीच चलता निरन्तर विवाद हूँ।
रागों में हूँ मल्हार और भावों में हूँ मैं श्रृंगार,
उसके समन्वय से रचा मंसूर का आत्मवाद हूँ।
तकी थी खुद की ही राह, बनकर सुदर्शन तालाब,
अब कुंड दामोदर में सुनाई देता मंत्रों का आस्वाद हूँ।
किया था तांडव, प्रियतम के मृत्यु के गहरे विषाद में,
अब पार्वती की गर्दन पर टपकते पसीने का स्वाद हूँ।
सिखाया था सांख्य योग अर्जुन को रणभूमि के बीच,
अब शिवोहं शिवोहं में होता अहंकार का अवसाद हूँ।
ढूँढना हो गर मुझे, तो पहुँच जाना गोरख की चोटी पे,
अघोरिओं की चिल्लम में बसता सूक्ष्मता का वाद हूँ।
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कुछ कुछ कविताएँ उपलब्धि रूप होती हैं। उपलब्धि रूप कविता उसे कहते हैं जिसमें आप को कोई प्रयास न करना पड़े। उस कविता में शब्द ऐसे फूटते हैं जैसे बारिश के बाद हर जगह हरियाली फूट निकलती है। हिन्दू धर्म के तत्वज्ञान में जो थॉट ऑफ स्कूल मुजे सबसे ज्यादा पसंद है वो है अद्वैतवाद। रात के 1 बजे सोने की तैयारी कर रहा था तब ये शब्द फूट पड़े और पहली पंक्ति लिखी। उसके बाद ऐसा लगा कि खुद माधव सारथी बनकर सैर करा रहा है खुद की! इस कविता में जो सुदर्शन तालाब और दामोदर कुंड की बात है वो गुजरात के जूनागढ़ में गिरनार पर्वत के सानिध्य में स्थित हैं। उस गिरनार पर्वत को गुजरात का सबसे ऊँचा पर्वत कहा जाता है और उस पर्वत की चोटी पर गोरखनाथ का मंदिर है। ये पर्वत सभी सभ्यताओं को अपने अंदर पिछले 2 करोड़ सालों से छुपाए बैठा है, क्योंकि उस पर्वत पर आपको जैन देरासर भी मिलेंगे और मुसलमानों की दरगाहें भी!