ओस की बूंद  रोशन "अनुनाद"

ओस की बूंद

रोशन "अनुनाद"

ओस की बूंदें,
उनका रंग-रूप,
उनका स्वभाव,
कौन बता पाता है?
जो भी देखता है,
बस देखता ही जाता है।
 

अभी-अभी नींद से जागे,
सूरज की अंगड़ाई लेती
किरणों से
अठखेलियाँ करती,
इन चंचल, निश्छल,
कोमल, थोड़ी सी धवल,
नन्ही बूंदों को,
जैसे इन्तज़ार रहता है
अपने प्रीतम से मिलने का,
सजल आँखें निहारती हो
राह उसकी, है चाह जिसकी।
 

तुम शर्माती सकुचाती,
जैसे अभी-अभी
नहा कर आई हो,
अपनी थकान, सुस्ती,
सब बहा कर आई हो,
आलिंगन करती हो
बेमेल मन लिए,
अपनापन लिए,
चमकती आँखों से
जैसे अपलक
निहारती हो।
 

उसके आने पर चमकती हैं,
खुशी से जैसे दमकती हैं,
घुल जाने का भय नहीं,
अलग रहने का निश्चय नहीं,
मिलना है प्रीतम के रंग में,
उनकी छवि है हर अंग में।
 

अभी-अभी अलसाया
जागा सूरज अपनी हथेलियों में
तुम्हें स्पर्श कर, महसूस कर ,
नई ताजगी पाता है।
अपने चेहरे, अपनी आँखों पर,
तुम्हारे निश्छल स्पर्श से
जवाँ होता जाता है।
 

मन मोहिनी तुम मोहती हो,
किरणों से अठखेलियाँ कर,
उसी में विलीन हो जाती हो।
कोई गुरूर,
कोई अभिमान नहीं,
कोई व्यर्थ का
स्वाभिमान भी नहीं,
मिलन को व्याकुल,
अस्तित्व अपना सौंप कर
अस्तित्व विहीन हो जाती हो।
 

बन कर बादल फिर बरसती हो,
उसके मिलन को तरसती हो,
फिर वही अलसाया भानु,
उसकी अलसायी बाहें,
तुम्हारे सानिध्य को
आतुर निगाहें,
वही प्रेम, वही प्रणय,
वही मंच वही अभिनय,
निरंतरता से चल रहा है,
मन में एक दूजे के लिए,
अव्यक्त अटूट प्रेम पल रहा है।

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