उलझन  RATNA PANDEY

उलझन

RATNA PANDEY

धागे हैं अनेकों बुने हुए,
जो उलझे फिर सुलझते नहीं
लाख सुलझाना चाहो,
चाहे जितना नीर बहाओ,
हाथों से कितना भी सहलाओ,
चाहे जितना जी जान लगाओ
उलझ गए सो उलझ गए।
 

कोशिश जो कर पाओ
जितना फिर खुल जाए,
लपेट उसे फिर लेना
लगाकर प्यार का लेप,
मांजे में तब्दील उसे कर लेना,
तोड़े से फिर टूटे नहीं
साथ कभी छूटे नहीं।
 

लपेट प्यार की डोरी
जीवन की पतंग उड़ा लेना,
कहा सुना सब माफ़ करना
दिल का मैल साफ़ करना,
धागे फिर उलझे नहीं,
प्यार से बुने इन धागों को
प्रेम सहित बाँधे रखना।
 

रंग बिरंगे धागों के संगम से
रिश्ते बुने जाते हैं,
जब भी मिलते हैं आपस में,
रंग एक दूजे पर अपना छोड़ जाते हैं,
मिले जुले इन रंगो से
जीवन को रंगीन बनाए रखना,
प्यार से सजाए रखना।

अपने विचार साझा करें




2
ने पसंद किया
1130
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com