गोरख बुलाएँ  Rushi Bhatt

गोरख बुलाएँ

Rushi Bhatt

छोड़ माया खो जा खुद में गोरख बुलाएँ
उतार चोली, जा नजदीक गोरख बुलाएँ

मर, मर के बन, बनना ही बने जब असिद्धि
बनने और होने के बीच मे गोरख बुलाएँ

चद्दर हटी, काया उड़ी, वहीं समा गया
इन हंगामों के मौन के बीच गोरख बुलाएँ

मैं हूँ, मैं बना, मैं हुआ, मैं था, मैंने ही किया
खुद में ही खुद को मिलाने गोरख बुलाएँ
 

1. इस कविता में पहली और दूसरी पंक्ति शंकर के माया के ख्याल को अनुमोदन दे रही हैं। जो देख रहे हैं हम वो माया है, उतार दो सबकुछ तभी अंदरूनी हिस्सा दिखेगा। जैसे गोरखनाथ ने अपने गुरु मत्स्येंद्रनाथ को कहा था कि जो आप देख रहे वो सिर्फ एक नींद हैं। जागिए और अंदर की आँखों से जो शरीर के उस पर हैं उसे देखिए।

2.  तीसरी और चौथी पंक्ति रजनीश के बी और बिक्रम पर आधारित हैं। कुछ बनना और जो हैं उसमें खिलने के बीच की कश्मकश बताने की कोशिश की है।

3. पाँचवी और छठी पंक्ति गोरखनाथ और शिव की तंत्र साधना पर आधारित है। कहा जाता है कि गोरखनाथ तंत्र साधना में अव्वल थे, जो सीधा शिव से जुड़ता है।

4. सातवीं और आठवीं पंक्ति थोड़ी कठिन हैं। गीता में कृष्ण कहते कि मामकं शरणम व्रज:, जिसका अर्थ हैं कि सब कुछ छोड़ के तू मेरे शरण मे आजा। ये मेरा शरण मतलब खुद का शरण हुआ, क्योंकि कृष्ण का मैं जो है वो समष्टि वाला मैं है और हमारा जो मैं होता हैं वो खुद का ही मैं होता हैं। हम खुद के आगे कुछ नहीं देखते और कृष्ण सब में खुदको देखते हैं।

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