शिक़वा ना शिक़ायत Rajender कुमार Chauhan
शिक़वा ना शिक़ायत
Rajender कुमार Chauhanशिक़ायत नहीं ए-ज़िन्दगी तुझसे,
कभी शोला कभी शब़नम दिए हैं!
क़ाबिल-ए-बर्द़ाश्त हैं ये ज़ख्म तेरे,
मेरे गुनाहों को देखते कम दिए हैं!
लाख खुशियों से नवाज़ा हो चाहे,
चाहत के बदले तो ग़म ही दिए हैं!
द़ामन पर बेशक़ द़ाग हैं हमारे,
ये सौग़ात तुमने ही सनम दिए हैं!
हम ना सही द़िल तो पाक़ था,
तुमने ही तो इसे वहम़ दिए हैं!
तुम दोस्ती निभा ना सके हमसे,
हमनें दुश्मनों को मरहम़ दिए हैं!
ना प्यार ना ख़्वार में ख़रे उतरे,
हाँ! वायद़े ज़रूर बेरहम़ किए हैं!
कभी उधेड़ा तो कभी कुरेद़ा है,
यही सिलसिले तो हरदम़ दिए हैं!
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वक़्त कभी एक जैसा नहीं रहता, चाहे इन्सान छोटा हो या बड़ा हो। जीवन में खुशियों और ग़म की आवा जाही लगी रहती है। जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन, परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी प्रकार दु़ख सुख भी जगह बदलते रहते हैं। इस से प्रभावित होकर हमें अपने फर्ज़ और कर्ज़ नहीं भूलने चाहिए।