अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए  Bhanu Pratap Singh Tomar

अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए

Bhanu Pratap Singh Tomar

अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए,
वो नासमझ मेरा जहाँ छोड़ गए,
जा छोड़ दिया हमने भी जमाने से वफ़ाएँ करना,
कदमों से जमीन खींच के आसमाँ छोड़ गए,
अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए।
 

अपनों से अपनों का गिला क्या करूँ,
शायद नसीब में था वही मिला क्या करूँ,
हमने फूँक दिए मकान उनके उजाले को,
वो हँसते हुए जलता मकान छोड़ गए,
अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए।
 

हम भी एक नादान से दिल लगा बैठे,
उन पर हम अपना हक जता बैठे,
वो नादान समझ सका ना शायद मेरी मुहब्बत,
वो अधूरा ही प्यार का इम्तहान छोड़ गए,
अश्क चेहरे पे निशाँ छोड़ गए,
वो नासमझ मेरा जहाँ छोड़ गए।

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