मानव के इस संसार में RAHUL Chaudhary
मानव के इस संसार में
RAHUL Chaudharyकम है जमीं पर नमी आज कुछ,
बारिशों में नहीं वो बातें अब बस,
तनिक से गीले एहसासों में कुछ,
थमी है हवाएँ इन फिज़ाओं में बस।
आँधियों के ढेर कब के सो गए,
ऊँची इमारतों को थपकियाँ देकर,
बारिशें फिर लौट गईं हौले,
चुप्पी थामे गलियों में से होकर।
मिट्टी फिर रह गई बिन नहाए,
आस में आएँगी ये बरसातें,
जाते-जाते तोड़ गए ओ नीदें,
मीठे सपनों के गुलदस्ते।
चाँदनी भी तरस गई हर बूंद हर प्यास को,
आकाश ने भुला दिया इन्द्रधनुष के कयास को,
बादलों ने रुख लिया शून्य के आगोश को,
पंछियों ने मोड़ ली उड़ानें परदेश को।
सिमट के जलकोष ने
बहिष्कार किया जल मास का,
पड़ गई दरारें धरती में,
हरियाली ने लिया रास्ता निर्जल उपवास का।
दरख़्तो ने ठान लिया,
दिया सख्त लगाम डालों को,
पत्तों ने भी मान लिया,
किया बंद खिलाना फूलों को।
तितली ने भी भाग लिया,
प्रकृति की इस हुंकार में,
भौंरें भी नचना छोड़ दिए,
जुड़ गए इस ललकार में।
कृत्रिम साधन इनका शोधन,
आवरण चढ़ गया जमीं पर,
सुख आराम के प्रसार में,
हावी प्रकृति पर दानव 'दोहन',
मानव के इस संसार में।
