केरल के द्वार RAHUL Chaudhary
केरल के द्वार
RAHUL Chaudharyएक प्रहर यूँ झर-झर,
बादल पिघला हर-हर,
जल कोष बिछाया घर-घर,
उथल पुथल जीवन यूँ मर-मर।
हरियाली छिप गई जल बीच अधर,
खेत निपट गए होकर जर्जर,
घरौंदे बुने थे वर्षों तिनकों पर,
बूंदों की सेना ले गई दूर डगर।
मुस्कुराहटें ले बह गई जलधार,
दाने-दाने पर कर गई विष का प्रहार,
गालियाँ खोकर डूबी इस मझधार,
जनजीवन त्रस्त होकर भटक रहा संसार।
मानवता के वजूद का आधार,
राहत मानवता बन उमड़े द्वार-द्वार,
तो थोड़ी खुशियाँ, थोड़ा उपकार,
पहुँचे लेके हिम्मत बँधाने 'केरल' इस बार।
परमात्मा से बंदगी यूँ हाथ जोड़कर,
हो क्षमा याचना किसी भूल या कसर,
बन्दे हैं तेरे, बच्चे हैं, हृदय में तेरा दरबार,
रहमत करो कृपा की हे प्रभु ! हमको तेरी दरकार।