मुखौटा Arjit Pandey
मुखौटा
Arjit Pandeyघरौंदा टूटने की कगार पर,
शैतान सर झुकाए मजार पर।
छीन लिया जब उससे उसका गर्व,
कैसे हक़ जताए अधिकार पर।
मौसेरे भाई हैं गले मिलेंगे,
भरोसा मत कर सरकार पर।
निवाला छीनकर बनाया है जो घर,
सीलन पड़ गई है दीवार पर।
खुद को चाहा बेचना भरी महफ़िल में,
कीमत न लगी मेरी बाजार पर।
वृद्धाश्रम में सुबकती वो आँखें,
तलवारें चल रही संस्कार पर।