दोहरे मानक! Mohanjeet Kukreja
दोहरे मानक!
Mohanjeet Kukrejaपैसे से कुछ नहीं होता
ऐसा हरदम कहते हैं,
और ख़ुद आलीशान मकानों में रहते हैं।
बाक़ी दुनियावी दुखों का
रोना ज़रूर रोते हैं,
पर रात को मखमली गद्दों पर सोते हैं।
दिखावाबाज़ी न करने का
दम तो भरते हैं,
अपनी शादियाँ लेकिन आसमानों में करते हैं।
फ़िज़ूलखर्ची रोकने की
बात भी चलाते हैं,
हर रात मगर ख़ुद ये दिवाली मनाते हैं।
हर सरकारी चीज़ पर
उँगली ख़ूब उठाते हैं,
और उसी सरकारी कुर्सी पर मरे जाते हैं।
भूखे-नंगे ग़रीब इनको
नज़र नहीं आते हैं,
हाँ, पत्थर पर पैसा-सोना ख़ूब चढ़ाते हैं।
मेरा देश, मेरा भारत महान
का नारा लगाते हैं,
भ्रमण के लिए हमेशा विदेश ही जाते हैं।
अपने से कुछ हो न हो
बस नुक्स निकालते हैं,
दूसरों पर ये सरे-आम स्याही उछालते हैं।
विश्व भर में मांस का
निर्यात करवाते हैं,
निर्दोष को दोषी बता कर ज़िंदा जलवाते हैं।
हर बात में राजनीति के
रंग बराबर भरते हैं,
कुछ अपने पुराने पुरस्कार तक वापस करते हैं।
अपने यहाँ बेचारा ग़रीब
दाल (-रोटी) को तरसता है,
और इनका अनुग्रह पड़ोसी देशों पर बरसता है।
खाया पचाने के लिए
ये सैर करते हैं,
जबकि बहुत से लाचार यहाँ भूख से मरते हैं।
नशा-मुक्ति के विषय पर
जब गोष्ठी होती है,
हाथ में सिगार मेज़ पर विदेशी बोतल होती है।
वातानुकूलित परिवेश में
सारा कारोबार होता है,
बढ़ते विश्वव्यापी तापक्रम पर विचार होता है।