उनकी निगाहों से हम उतर भी गए VIVEK ROUSHAN
उनकी निगाहों से हम उतर भी गए
VIVEK ROUSHANउनकी निगाहों से हम उतर भी गए,
मोहब्बत भी न मिली और हम खुद को खो भी गए।
कभी मेरे हाँथों को थाम कर चलने वाले,
किसी गैर के हाँथों को थाम कर चले भी गए।
बिठाया था जिनको हमने सिर-आँखों पर,
वो इतना गिरे कि मेरी आँखों से गिरते चले गए।
जिनको जाना था वो तो हम पर मुस्कुरा कर चले गए,
अश्क़ उनके हिस्से के मेरी आँखों से निकलते गए।
वो अपनी बेवफाई को खुदा की मर्ज़ी बताते गए,
हम इसे अपनी तक़दीर का हिस्सा समझते गए।
जिनको फूल समझ कर हम अपने दिल से लगाते गए,
वो काँटा बन कर पल-पल हमें ही चुभते गए।