जीवन का अर्थ VIMAL KISHORE RANA
जीवन का अर्थ
VIMAL KISHORE RANAएक अदद सर्द की धूप में
था सोच रहा बैठा-बैठा,
आँखें मूँदे हुए,
शायद और ही किसी कल्पना में,
कोई गहरी झील में गोते लगता सा,
या फिर शांत समंदर सा
था बीत रहा रीता-रीता।
मैं सेंध लगाकर चुपके से ही
कूद पड़ा तन्हाई में,
उसके मंथन के रहस्य की
गहरी सी परछाई में,
भंग किया ध्यान उसका
और पूछा क्या है मन में?
क्यों खुद से खुद का मेल किया,
तुम खोये हो क्यूँ चिंतन में?
वो बोला मुझसे हे परममित्र,
क्या अर्थ जाना है जीवन का?
क्या जान सके हो तुम अब तक,
क्या ताना-बना तन-मन का?
मैंने कहा, हे महात्मन जरा आप ही बतला दीजिये,
इस अज्ञानी के मन में जरा
ज्ञान की ज्योति जला दीजिए।
बोला कि जब चलना सीखा,
तब क्या मंज़िल निर्धारित थी?
कहना सीखा, सुनना सीखा,
तब क्या ज़िन्दगी आधारित थी?
पर कितने स्वर्णिम पल थे वो,
जब दिल में कोई भाव न था,
आँखों में चंचलता का रस,
अभाव में भी अभाव न था।
लकड़ी की छोटी सी गाड़ी
और मेरी माँ का ममत्व,
बस यही सब था अपना जीवन,
और कैसा अस्तित्व?
छोटी-छोटी सी खुशियाँ,
छोटे-छोटे से थे सपने,
छोटे से आँगन में खुश थे,
नहीं जाते थे इधर बसने, उधर बसने।
मैं बोला गुरुदेव आगे चलो,
मैं जान गया बाल-वर्तांत,
क्यूँ ले बैठे इन बातों को?
क्यूँ लहराया समुद्र निशांत?
वो बोला लक्ष्य निर्धारण में,
हम सालों से अब लगे हुए,
ये भी जोड़ो, वो भी जोड़ो,
निन्यानवे फेर में पड़े हुए।
वो है छोटा और यह ऊँचा,
उसको छोड़ो इसको पूछो,
यह पकड़ लिया, वो छूट गया,
इसको छोड़ो, उसको पकड़ो।
मैंने कहा ये दुनिया है,
दुनियादारी तो निभानी है,
जो बचपन था, वो बीत गया,
अब यही ज़िंदगानी है।
बोला मित्र कि यह बोलो,
क्या अर्थ जाना है जीवन का?
क्या जान सके हो तुम अब तक,
क्या ताना-बना तन-मन का?
बोला कि जीवन की मंज़िल
इस जीवन में खुश रहना है,
कोई रोक नहीं, कोई टोक नहीं,
स्वच्छंद नदी सा बहना है।
इस जीवन को जीना ही
जीवन का असली अर्थ है,
आज वही जी पाता है,
जो खुश रहने में समर्थ है।
सामर्थ्य से मंज़िल पाना,
अनिवार्य है, करना होगा,
पर इस जीवन के रंग अनेक,
सभी रंगों में बिखरना होगा।
माना की यह बचपन नहीं,
इसका मतलब कोई दौड़ नहीं,
कब धुरी छूट जाए इसकी,
इस जीवन का कोई ठौर नहीं।
जब तक जीते हो हर पल को,
खुश रहकर तुम भरपूर जियो,
हर पल ही यह एहसास जगे,
तुम और जियो, तुम और जियो।
हर पल ही यह एहसास जगे,
तुम और जियो, तुम और जियो।
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प्रस्तुत कविता के माध्यम से दुनियादारी की उस दौड़ पर निशाना साधने का प्रयास किया गया है जिसने जीवन के रस को चुरा लिया है। हम लोग सुविधा को ही सुख समझ रहें हैं, परंतु जीवन का असली रस शायद सुविधा व विलासिता में नहीं। उस जीवन का क्या फायदा, जिसमें हम लोग एक दौड़ में शामिल होकर, अपनी ज़िंदगी के भावनात्मक व रचनात्मक पहलू से इतर, धन प्राप्ति का एक यंत्र बनते जाएँ। जीवन का अर्थ, सिर्फ खुश रहना है।