श्रद्धा सुमन माँ भाषा को Rajender कुमार Chauhan
श्रद्धा सुमन माँ भाषा को
Rajender कुमार Chauhanअर्पित हैं श्रद्धा के सुमन,
शुभ चरणों में माँ भाषा के।
हिन्दी है स्वरूप इसका,
संस्कृत इसकी माता है,
गागर में भी भर दे सागर,
ऐसी ये भाग्य विधाता है।
स्मरण सदैव रहे कर्तव्य,
माता की मुझसे आशा के,
अर्पित हैं श्रद्धा के सुमन,
शुभ चरणों में माँ भाषा के।
मैं बालक हूँ ये पोषक है,
सद् जीना मुझे सिखाती है,
मानवता विकसित करने को,
ज्ञान का दूध पिलाती है।
याद रहे मुझे इसका कथन,
जीवन में मेरी अभिलाषा के!
अर्पित हैं श्रद्धा के सुमन,
शुभ चरणों में माँ भाषा के।
सूरज सा प्रकाश इसका,
उज्ज्वल भविष्य बनाता है,
आशा के दीप कर ज्वलित,
मन में विश्वास जगाता है।
शब्दों में सीमित नहीं रहती,
हैं अर्थ विशेष परिभाषा के,
अर्पित हैं श्रद्धा के सुमन,
शुभ चरणों में माँ भाषा के।
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मेरे विचार में युगमंच कोई पाठशाला नहीं कि अधिकाधिक हिन्दी के नवीनतम और कठिनतम शब्दों का प्रयोग कर पाठकों को सिखाया पढ़ाया जाए! अपितु सरल, सहज और सुन्दर आसान शब्दों के माध्यम से जनसाधारण तक विचार, समीकरण और निष्कर्ष पहुँचाया जाए ताकि उनके मानस पटल पर वो चित्रित हो सके! तभी कवि की रचना सार्थक है!