दहेज का दर्द माधव झा
दहेज का दर्द
माधव झाजैसे-जैसे होती मेरी बिटिया सयानी,
क्षण-क्षण बढ़ती चिन्ता मेरी,
कैसे इसका ब्याह रचाऊँ,
हो रही दहेजों की मांग भारी।
जैसे-जैसे होती मेरी ...
जीवन अपने जो भी कमाया,
सारी इनकी परवरिश में है लगाया,
अब कहाँ से लाऊँ इतना धन,
जिससे बनेगी मेरी बिटिया दुल्हन।
जैसे-जैसे होती मेरी ...
देखकर दुनिया की जालिम रीति,
प्रण किया मैंने न करूँगा इन संग प्रीति,
चाहे रहे जीवन भर मेरी बिटिया कुंवारी,
माँगूँगा ना कभी धन की भीख।
जैसे-जैसे होती मेरी ...
शर्म करो ऐ बेटे वालों,
कैसी ये माँग तुम्हारी,
वंश बढ़ेगा जिससे तुम्हारा,
उससे क्यों करते लेनदारी।
जैसे-जैसे होती मेरी ...