मैं हिंदुस्तान हूँ Rahul Kumar Mishra
मैं हिंदुस्तान हूँ
Rahul Kumar Mishraउत्तर में खड़ा विशाल हिमालय
जब घाव वक्ष पर सहता है,
तब गर्जन करता शौर्य हिन्द का,
चीख चीख कर कहता है,
उठ, देख व्यथा माँ भारती की,
तेरे शौर्य का दृढ़ अह्वान हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
मस्तक पर कश्मीर सुशोभित,
पैरों में केरल बजता है,
पूरब की भीगी बारिश में,
गुज़रात का गरबा सजता है।
वो अमर कथाएँ हृदय समेटे,
वीरों का राजस्थान हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
मैं नदियों की कलकल धारा,
मंदिर, मस्जिद का दास हूँ मैं,
मुझे देख चर्च, गुरुद्वारे में,
काशी में ज्ञान का वास हूँ मैं।
मैं राम, कृष्ण का हूँ वंदन,
हज़रत की पाक अज़ान हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
मैंने ही शून्य को जन्म दिया,
जग को वेदों का ज्ञान दिया,
नभ के आँचल तक कदम बढ़ाकर,
दुनिया को नई उड़ान दिया।
अग्नि से गगन को दहलाता,
वो भाभा और कलाम हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
मैं स्नेह पिता का हूँ असीम,
माँ में ममता की झाँकी हूँ,
मैं त्याग हूँ, तप हूँ, नारी का,
बहनों के लाज की राखी हूँ।
धरती को लहू से सिंचित करता,
वो तपता हुआ किसान हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
जब-जब मेरी इज़्ज़त पर
दुश्मन ने आँख उठाया है,
तब-तब माँ तेरे लालों ने,
हँसकर के लहू बहाया है।
मातृभूमि की रक्षा में,
सिन्दूरों का बलिदान हूँ मैं,
मैं गाँधी, भगतसिंह, राजगुरु,
आज़ाद का हिंदुस्तान हूँ मैं।
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मैं हिंदुस्तान हूँ जो हर व्यक्ति के दिल में प्यार बनकर धड़क रहा हूँ, जो किसी वीर सिपाही की वीरगाथा लिख रहा हूँ। सुबह मंदिर की पूजा और भोर की मस्जिद के अज़ान में भाईचारे को खोल रहा हूँ, मैं हिंदुस्तान बोल रहा हूँ। देश प्रेम में लिखी यह कविता भारत की विभिन्नता, एकता और भाईचारे को दर्शा रही है और साथ ही लिख रही है किसी माँ के आँचल पर उस वीर पुत्र की गाथा जो भारत माँ की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति हँसते-हँसते देता है। जय हिंद जय भारत।