बेटी बचाओ  Premlata tripathi

बेटी बचाओ

Premlata tripathi

बह रहीं कैसी हवाएँ बागवानी हो गई,
प्रश्न उठते अब नयन बेटी सयानी हो गई।
 

खिल सका उपवन हमारा, बेटियों के मान से,
हाँ बचाया कोख हमने पर अमानी हो गई।
 

आँधियों को दोष क्या दें घर हमारे ढह गए,
ढह गया आदर्श जब बेटी बचानी हो गई।
 

धर्म के आलय जहाँ उठतीं हया की बोलियाँ,
रो रही क्यों अस्मिता खो आज पानी हो गई।
 

दिन उजाले को बनाते हैं अमावस क्यों घना,
रात की छाया डराती सी जवानी हो गई।
 

खोल दी हमने किताबें आज करुणा प्रेम की,
छल प्रपंचों की कथा सुननी सुनानी हो गई।
 

आधार छंद - गीतिका
26 मात्रा 14,12 पर यति
2122 2122 2122 212

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