हे गणपति बप्पा  Anupama Ravindra Singh Thakur

हे गणपति बप्पा

Anupama Ravindra Singh Thakur

हे गणपति बप्पा,
हे गणपति बप्पा,
आश्चर्य होता है मुझको,
कहते सुना है सबको
आज विदाई देनी है आपको,
कल से फिर दिखाई ना देंगे आप हम सबको।
 

कई सवाल उठ रहे मस्तिष्क में हैं,
फिर वह जो मेरे मंदिर में विराजे वह कौन हैं?
क्या केवल 10 दिवस के लिए आपमें प्राण हैं?
हर पूजा में पहले पूजे जाने वाले प्रथम पूज्य आप हैं,
फिर कैसे आप शरीर से नाशवान हैं?
 

लोगों की समझ भी हास्यास्पद है,
वे मान बैठे आपको मनुष्य हैं,
जन्म-मरण इन सब से आप परे हैं,
प्रथम पूज्य गणेश आप तो सर्वज्ञ हैं।
 

कल मैं फिर से आपकी आरती गाऊँगी,
हर पल गणेश उत्सव मनाऊँगी,
केवल मंडोल में से गानों की आवाज सुन नहीं पाऊँगी,
गणेश उत्सव को विकृत रूप
देने वालों पर अवश्य शोक मनाऊँगी।
 

ध्यान से देखो, बप्पा हम सब में हैं,
वे कहीं नहीं गए, हर दिल में हैं,
वे कहीं नहीं गए, हर अनाथ बालक में हैं,
वे यहीं कहीं, वृद्ध माता-पिता में है।
 

बप्पा को मंडल में नहीं
ह्रदय में स्थान चाहिए,
बप्पा को डीजे नहीं दीनबंधु चाहिए,
बप्पा को मोदक नहीं परोपकारी चाहिए,
बप्पा को फूलों का हार नहीं सच्चा प्यार चाहिए,
बप्पा को स्वयं का विसर्जन नहीं
कुविचारों का विसर्जन चाहिए।

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