इंकलाब ज़िंदाबाद guddu singh kundan
इंकलाब ज़िंदाबाद
guddu singh kundanहाथ में बंदूक उठाए चल पड़ा वह सीमा की ओर,
वीर पुरुष, खूंखार शेर, आँखो में दहकते अंगार,
आसमान भी शीश झुकाए ऐसा है इनका वीरता गान,
दुश्मनों की टोली में अब चीख-पुकार गूंजेगी,
बढ़ रहा आगे हिंदुस्तानी मिट्टी में जन्मा यह खूंखार शेर।
सुनो गौर से ऐ गद्दारों अब तुम्हारी खैर नहीं,
छलनी होगा तुम्हारा सीना मिट जाएगा जात-पात का नारा,
एक-एक को धूल चटाएगा हिंदुस्तान को खून से सींचेगा,
भारत माता का है यह सपूत नहीं झुकेगा,नहीं रुकेगा,
खून की होली खेलकर इतिहास को पुनः दोहराएगा।
संभल जाओ तुम देश के गद्दारों, बादलो अपनी सोच को,
धन दौलत की लालसा छोड़ो लोगों को अब सताना छोड़ो,
हिंदुस्तानी शेर का है यह पंजा दुश्मन इसके आगे होते ढ़ेर,
सर्दी, वर्षा, ओला झेलता,अपने पथ पर अडिग रहता,
इनके जज्बे को है सलाम, इंकलाब ज़िंदाबाद।