अलविदा  Ravi Panwar

अलविदा

Ravi Panwar

कोरा कागज़ हूँ मैं
कुछ भी कहना नहीं,
झील बन जाऊँगा
मुझको बहना नहीं,
मुझसे जो रूठा है मेरा ये दिल,
आज उसको मनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
 

रास्ता है अगर
वो मुड़ जाएगा,
टूटा सपना है
फिर से जुड़ जाएगा,
अलविदा जिन ग़मों को मैंने कहा,
आज उनको छिपाने का मन का है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
 

कुछ खत थे पुराने
कुछ खतो में गुलाब,
मैंने फिर से पढ़े
वो अधूरे जवाब,
जी रही जो मोहब्बत इनके दरमियाँ,
आज उनको जलाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
 

डर गए थे
एक छोटे सवाल से,
रखेंगे कैसे
मेरी यादें संभाल के,
एक कसक जो आँखों से आ गई,
पोंछ कर उसको तेरे रुमाल से
आज फिर मुस्कुराने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
 

कोशिशे कितनी करता है
मेरा ये मन,
न जमीं भूल पाती
और न ये गगन,
शायद नहीं कोई फरियाद में,
लिखी जो ग़ज़ल उनकी याद में,
आज उनको सुनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

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