इक शाम मैं  BRIJ BHUSHAN YADAV

इक शाम मैं

BRIJ BHUSHAN YADAV

इक शाम मैं आइने के आगे ठहर गया,
चेहरा ठहरा रहा, रूह सफ़र कर गया,
इक शाम मैं ...........
 

स्वप्न का फूल दिल के चमन में खिल गया!
इक शाम मैं ...........
 

पड़ी पहली नज़र तो नज़र को नजराना मिल गया,
फलक का चाँद जो मेरे आईने में खिल गया,
सर्द मौसम में भी मैं बर्फ़ सा पिघल गया,
इक शाम मैं ...........
 

खबर की तन्हाई भी मयकदे का साकी बन गया!
इक शाम मैं ...........
 

हमें था क्या पता वो मेरा ही साया है,
पड़ी रोशनी जो उस पर वो लुप्त हो गया,
हँसा ठहाके से आईना और दरार सा पड़ गया,
इक शाम मैं ...........
संजोया पलकों का अरमां सहसा टूट कर बिखर गया!
 

इक शाम मैं आइने के आगे ठहर गया,
चेहरा ठहरा रहा रूह सफ़र कर गया,
इक शाम मैं ...........

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