चाँद शशांक दुबे
चाँद
शशांक दुबेछुप-छुप श्रृंगार देखा
धरती के चाँद का तो,
चाँद गगन का भी
अब जलने लगा।
देखा यार प्यार को जो
ऐसे खिलते हुए,
चाँद के मन को भी
अब खलने लगा।
छुप रहा ओट में लो
बादलों की आड़ देखो,
प्रेम तप का इरादा
मन पलने लगा।
जब देखा सत प्रेम
दोनों की ही आँखों में तो,
धीरे-धीरे गगन में
लो अब चलने लगा।