दो टूक रोटी RAHUL Chaudhary
दो टूक रोटी
RAHUL Chaudharyतेज़ झोंका इक हवा का
गलियों से गुजरता,
सरसराता टकरा गया,
वहीं तो लेटा था बचपन
बंद दरवाजे के उधर,
सो रहे थे कितने घर,
नंग धड़ंग बिखरे पड़े
भूख में सनी चौखटों पर।
परत यूँ धूल की
अंगों पर जम गई,
पेट की तलाश में
लिपट मैल की चादर में,
आहटों की शोर में
नींद से जग गए,
कोई शायद दो टूक लेकर
अा खड़ा हो चौखटों पर।
तृप्त हो जाएगा मन
पाकर अमृत टूक से,
राहत मिल जाएगी कुछ
कमबख्त भूख को नींद से।
कोई माँ बनकर,
कोई दुत्कार कर,
जैसे भी हो बस अा जाए,
दो टूक लेके चौखटों पर।