मुलाकात  Ravi Panwar

मुलाकात

Ravi Panwar

आईये आज उनसे मुलाकात कीजिए,
लिख रहा हूँ गजल, उनको याद कीजिए।
 

इश्क-ए-हवा की जुल्फों से एक लट फिसल गई,
हम भी फिसल गए थे, याद कीजिए।
 

उंगलियों को मोड़कर उंगलियों ने जब कहा,
कि कुछ हो गया था तुमको भी, याद कीजिए।
 

रात थी हसीन और ज़ुस्तज़ू मेरी,
बिखर गई थी चाँदनी, याद कीजिए।
 

धड़कन भी बढ़ रही थी और हम भी बढ़ रहे,
तेरे करीब धीरे-धीरे, याद कीजिए।
 

जब चाँद आसमान से घूँघट में आ गया,
मैं कितना बेसबर था, याद कीजिए।
 

वो किसकी थी शरारत, मुझसे लिपट गए,
ठंडी हवाएँ सर्दियों की, याद कीजिए।
 

बीत न जाए रात, कोई रोक लो इसे,
वो रात भर की बातें, याद कीजिए।
 

ढल गई थी रात और उम्र भी मेरी,
मैं वहीं हूँ आज भी, याद कीजिए।
 

हाथ छोड़ कर मेरा, चल दिए कहाँ,
तन्हा लगता था डर तुमको, याद कीजिए।
 

थामूंगा हाथ तेरा, जब तक हैं ज़िन्दगी,
वादा किया था ज़िन्दगी से, याद कीजिए।
 

क्या हुई खता कि रूक गया मेरा सफर,
ए हमसफ़र मेरे कुछ तो याद कीजिए।
 

आ जाइए उन आखों में फिर नूर लौट आए,
हँसते थे जिनमे तुम, याद कीजिए।
 

रुख्सतें हो गई, रुक सकता अब नहीं,
आ रहे हैं हम भी बस, याद कीजिए।
 

मोहब्बतें होती नहीं लिबाज़ से "रवि"
और होती हैं बस जब ही, जब याद कीजिए।

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