मनुष्य  VIVEK ROUSHAN

मनुष्य

VIVEK ROUSHAN

मनुष्य हो तो
मनुष्य होने की
परिभाषा को समझो तुम!
 

धर्म-अधर्म,
जात-पात,
रंग-भेद,
ऊँच-नीच के
भेद-भाव को छोड़ो तुम।
 

मनुष्य हो तो
मनुष्य से तुम
प्यार करो,
धर्म, जात, रंग-भेद पर
हो रहे मनुष्यो के बँटवारे का
तुम बहिष्कार करो।
 

मनुष्य हो तो
मनुष्यता को अपनाओ तुम
कभी मुफ़लिसो को भी
गले से लगाओ तुम!
 

ये मेरा मंदिर,
ये मेरा मस्ज़िद,
ये मेरा गुरुद्वारा,
ये मेरा गिरजाघर - में
भगवानों के बँटवारे को
छोड़ो तुम,
गर मनुष्य हो तो
हर दूसरे मनुष्य को
अपने साथ जोड़ो तुम।
 

मनुष्य है,
तो सुख-दुःख है,
हँसना है, रोना है,
विचार है, आविष्कार है,
नदियाँ हैं, जंगल हैं,
पशु-पक्षी हैं, जानवर हैं।
 

गर मनुष्य नहीं है तो
इन खूबसूरत चीज़ों का
होना भी बेकार है।
मनुष्य से ही तो
इस धरती की पहचान है,
गर मनुष्य नहीं है तो
ये धरती वीरान है...!

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