इस जमाने में  Ravi Panwar

इस जमाने में

Ravi Panwar

कोई मशगूल आने में, कोई मशगूल जाने में,
न जाने कितने मिलते हैं मुसाफिर, इस जमाने में।
 

चिरागों में, ख्वाबो में, छिपा बैठा नकाबों में,
हर तरफ बिखरा अँधेरा, इस जमाने में।
 

झुकी आँखों से कहते हैं, कहीं पे तुमको देखा है,
लोग माहिर है पागल बनाने में, इस जमाने में।
 

मयखानों में मिल जाते हैं शायर, आज भी अक्सर,
टूट जाते हैं दिल जिनके, इस जमाने में।
 

मीठी हैं जलेबी पर, बड़ी उलझन में रहती हैं,
मेरा ख़ालिक़ भी उलझा है शायद, इस जमाने में।
 

अब्र छठ जाए, तो मौसम से ये कह दूँगा,
तेरा हमशक्ल है एक दोस्त मेरा, इस जमाने में।
 

जीत कर देखो किसी का दिल तो फिर कहना,
सिकन्दर आज भी मिल जाता इस जमाने में।
 

मज़हब के मकानों में, गीता में, कुरानों में,
मौला एक ही होता है सबका, इस जमाने में।
 

गम अपने छिपाता चल, लोगों को हँसाता चल,
तेरे जैसा नहीं जोकर है कोई, इस जमाने में।
 

और, "रवि" मजबूर मत होना, सफर को निभाने में,
न जाने कितने मिलते हैं मुसाफिर इस जमाने में।

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