ज़ुबाँ PREM KUMAR KULDEEP
ज़ुबाँ
PREM KUMAR KULDEEPज़ुबाँ जादू भी करती है, ज़ुबाँ काबू भी करती है,
यह दुआ भी करती है, तो शापित भी करती है।
ज़ुबाँ शंका भी करती है और शिकवा भी करती,
यह अपनों को अपनों से जुदा भी करती है।
यह जुबाँ ही है जो कहीं झगड़े तो कहीं फसाद करती,
और कहीं अपने दो मीठे लफ़्ज़ों से यह "प्रेम" की बौछार करती है।
हाँ यह ज़ुबाँ ही है जो अजनबी को भी अपना बनाती है,
और चन्द कड़वे शब्दों से अपनों को दूर करती है।
यह शांति और अमन की हमें सीख देती है,
तो चाय के प्याले में भी तूफ़ान लाती है।
यह बुज़ुर्गों को बच्चा और बच्चों को ज्ञानी बनाती है,
और जो ना समझे ज़ुबाँ की कीमत उसे मूर्ख बनाती है।
यह ज़ुबाँ किसी को नेता तो किसी को अभिनेता बनाती है,
किसी को "नामदार" तो किसी को "चौकीदार" बनाती है।
यह किसी को महलों का राजा तो किसी को रंक बनाती है,
इतना ही नहीं आज ज़ुबाँ ईश्वर की जाति बताती है।
ज़ुबाँ तलवार जैसी तेज़ और वायु की तरह प्रबल है,
और इसके बेजा-बोल से यह व्यक्ति को करती निर्बल है।
इसका प्रवाह सेकंड्स में जाता है सुदूर,
और प्रभाव इसका दिखता है दुनिया में दूर-दूर।
अगर ज़ुबाँ का करेंगे सावधानी से इस्तेमाल,
तो आपके जीवन को कर देगी यह मालामाल,
और कर दिया अगर आपने इसका गलत प्रयोग,
तो आपके जीवन का बज जायेगा ढ़ोल।
इसलिए ज़ुबाँ को चलाओ इतना जितना हो जरुरी,
वरना आपके जीवन की मंजिल रह जाएगी अधूरी।
बड़ी मूल्यवान है यह ज़ुबाँ, इसके बिना नहीं कोई आपका रहनुमान,
इसकी कीमत और महत्त्व जीवन की धरोहर है,
अन्यथा यह जीवन को कर देती नश्वर है,
सोच संभलकर तौल-मौल इसका करना उपयोग,
तभी आपका जीवन में हर जगह "प्रेम" से होगा सदुपयोग।