यथार्थ  Mohanjeet Kukreja

यथार्थ

Mohanjeet Kukreja

शायद आज से पहले कभी
इतना क़रीब हम आए ही नहीं,
पर आज मैं हमेशा की तरह
सिर्फ़ तट पर ही खड़ा न रहा,
बस दूर से तुम्हें देखते हुए
तुम्हारे इस उग्र रूप के कारण
दिल में एक भय सा लिए हुए।
 

और आज जब वो हिचकिचाहट
आख़िर कर ही दी मैंने ख़त्म,
तो तुम्हारी ओर बस सहज ही
जैसे बढ़ चले मेरे क़दम ...
 

जब दूरियाँ मिटीं तो यह जाना
तुम एक भयावह समुद्र कहाँ हो,
तुम तो बस एक लहर-मात्र हो !
जो बस कुछ दूर से ही एक....
प्रचंड-रूप धारण किए आती हो,
परन्तु थोड़ा पास आते ही जैसे
मेरे क़दमों से लिपट जाती हो!

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
1143
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com