धीरे-धीरे Babita Kumari
धीरे-धीरे
Babita Kumariयादों के तेरे बादल
छँट जाएँगे धीरे-धीरे,
नज़रों से हुई मुलाकात
रह जाएँगे धीरे-धीरे।
हम न लौटेंगे तेरे बुलाए
जो आज तेरा जाना हुआ,
कसमें सारे करके दफा
रो लेंगे धीरे-धीरे।
काश तेरा रुक जाना
किसी ख्वाब का हिस्सा होता,
उड़ लेते बिन पर हम
हँसना कोई बहाना होता,
तन्हाई की फ़िज़ाओं में
याद आएँगे धीरे-धीरे।
मुस्कुराहट तेरी खाली होगी
लफ़्ज़ों की वीरानी,
हँसकर भी रो दोगे तुम
आएगी जब याद हमारी,
ढूँढोगे जब अंदर खुद के
नज़र आएँगे धीरे-धीरे।
आ जाना उस मोड़ पर
ढले जहाँ दिन रात मेरे,
महसूस होगी वो मुहब्बत
हुए जुदा जो खुद से तेरे,
देना आवाज़ ख़ामोशी से अपनी
सुन लेंगे धीरे-धीरे।
अपने विचार साझा करें
प्रेम जीवन के अनंत रंगों का समावेश है, जहाँ उलझनें हैं, शिकायत है, दूरी है, भ्रम है और अंत में ना मिटने वाला अमर एहसास। इस एहसास को महसूस करके वापस अतीत को समेटना और भविष्य में उसी एहसास को पाने की ख़ातिर एक सच्चा प्रयास भी उस और अग्रसर करने में सहायक है। बस जरूरत है तो बंद पलकों को खोलकर उस पाक हृदय को आवाज़ लगाने की।