अमर सपूत VIKAS UPAMANYU
अमर सपूत
VIKAS UPAMANYUवो अब अमर सपूत नहीं,
वो "भगत" नहीं,
वो "सुखदेव" नहीं,
गर वो "आज़ाद" नहीं,
तो तुम आज़ाद नहीं।
जिनको आता था मर-मिट जाना
वो "बिस्मिल्ल" नहीं,
वों "राज" नहीं,
जो कूदे थे अखण्ड भंवर कुण्ड में,
अब वो "दत्त" नहीं,
वो "अशफाक" नहीं।
दिल मेरा भी रोता है "उपमन्यु",
सुन इन चमचो (नेता) की वाणी,
कहते हो तुम आतंकवादी उनको
सुखा लिया जिसने नम आँखों का पानी,
क़र्ज़ कैसे उतरोगे तुम उनका,
तर्पण कर दी जिसने पूरी जवानी।
वो माँ भारती के लाल
अमर सपूत हैं,
नहीं करते जो वंदन उनका,
वो सभी दुष्ट कपूत है।