पौ पल्लव  Rajender कुमार Chauhan

पौ पल्लव

Rajender कुमार Chauhan

पौ फटते ही भोर भये
उज्ज्वल रूप दिखाता है,
सूर्य सुनहरी किरणों के
सेहरे से सज जाता है।
 

पृथ्वी है दुल्हन इसकी
अम्बर मानो अँगना है,
चाँद सितारे गृह दूसरे
इसके भाई बहना हैं।
ब्रह्मांड है घर इसका
गृहों के चक्र चलाता है,
सूर्य सुनहरी किरणों के
सेहरे से सज जाता है।
 

बादल बाराती बन आए
बूँदें रिमझिम नाच रहीं,
दुल्हन के भी घर इधर
फुहारें खुशियाँ बाँच रही।
कल-कल करता झरना भी
सुन्दर संगीत बजाता है,
सूर्य सुनहरी किरणों के
सेहरे से सज जाता है।
 

दुनिया भर की हरियाली
मेंहदी इसकी रचाती है,
प्राकृतिक प्रखर प्रहारों से
सम्पत्ति इसकी बचाती है।
पर्यावरण का सुन्दर श्रगांर
यौवन का रूप सजाता है,
सूर्य सुनहरी किरणों के
सेहरे से सज जाता है।
 

हम तो इसकी सन्ताने हैं
इसने ही हमको पाला है,
क्या कर्ज़ चुकाएँगे इसका
ऋण में हर एक निवाला है।
फर्ज़ अदा बस हो इतना
प्रकृति को नहीं लज़ाता है,
सूर्य सुनहरी किरणों के
सेहरे से सज जाता है।

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