जीवन की आवा जाही Rajender कुमार Chauhan
जीवन की आवा जाही
Rajender कुमार Chauhanआज की शाम ढल जाएगी
कल फिर नया सवेरा होगा,
नन्हीं कलियाँ, हँसते फूल
मुस्कुराता कोई चेहरा होगा।
ये उपवन जाना माना है,
इसका हर फूल सुहाना है,
खुशबू की इसकी चर्चा है,
माली इसका द़ीवाना है।
कण-कण जहाँ दमक़ रहा
सृष्टि का श्रेष्ठ डेरा होगा!
आज की शाम ढल जाएगी,
कल फिर नया सवेरा होगा।
छाई छठा-छवि, रंग-बिरंगी,
सजी है दुल्हन सी प्रकृति!
चहुँओर छलकती सी आभा,
है भाव विभोर वसुधा कृति।
श्वास सरकती शुद्ध वायु का,
मानवीय रिश्ता ग़हरा होगा!
आज की शाम ढल जाएगी,
कल फिर नया सवेरा होगा।
दिन ढ़लता, मौसम बदलते हैं,
सूखे की मार पत्ते भी सहते हैं,
बरख़ा फिर बहार ले आती है,
जीवन चक्र इसी को कहते हैं।
वसन्त जहाँ फल फूल रही है,
किसी और का बसेरा होगा,
आज की शाम ढल जाएगी,
कल फिर नया सवेरा होगा।
जी लो पल-पल आज यहाँ,
कल ना मेरा है ना तेरा होगा!
आज खुशी की धूप खिली है,
कौन जाने कब अन्धेरा होगा।
कर लो आज काम कुछ ऐसा,
कल अपने आप सुनहरा होगा!
आज की शाम ढल जाएगी,
कल फिर नया सवेरा होगा।