मोबाइल की महिमा  Rajender कुमार Chauhan

मोबाइल की महिमा

Rajender कुमार Chauhan

सब कुछ छूट गया है पीछे,
जब से मोबाइल आया है!
 

फुरसत कहाँ किसी को,
किसी से बात करने की!
कौन उठाएगा ज़हमत,
जाकर मुलाकात करने की!
बैठे हैं सब आँखें मींचें,
जब से मोबाइल आया है!
 

रफ़्तार कितनी बढ़ गई,
तक़नीक़ चाँद पर चढ़ गई,
पुराने पिछड़ गए ख़यालात,
नई पीढ़ी इतना पढ़ गई!
बैठे हैं सब चार्ज़र को खींचे,
जब से मोबाइल आया है!
 

हिमाक़त कहाँ मिलने की,
बूढ़े हाथ पकड़ चलने की!
वक़्त गुज़रा है हम नहीं--
किसे परवाह है सुनने की!
माँ-बाप तो बैठे हैं खीज़े,
जब से मोबाइल आया है!
 

इस आपाधापी ने सब को,
एक दूजे से कर दिया दूर!
अपने ही अपनों के दुश्मन,
फिर भी जीने को मज़बूर!
नज़रें झुकी हैं सबकी नीचे,
जब से मोबाइल आया है!

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