दर्द-ए-दिल Ravi Panwar
दर्द-ए-दिल
Ravi Panwarमैं मैं नहीं, तुम तुम नहीं, क्या फ़साना हो गया,
आदत मेरी बस इस दिल को दुखाना हो गया।
अभी-अभी बनाए थे शीशे के मकां मैंने,
एक पत्थर के लिए दिल मेरा दीवाना हो गया।
किसी ने तोड़ा, तो निभा लिया किसी ने,
और किसी का वादा तो बहुत पुराना हो गया।
फ़ुरसत से आते थे जो बिताने को छुट्टियाँ,
मौसमी परिंदों को देखे जमाना हो गया।
कैसे लगाऊँ घर में, मैं गुलशन कोई तेरी जगह,
ये तो फिर से गुल को खिलाना हो गया।
और वो तेरी आँखों में उलझी है इस तरह,
ये दर्द-ए-दिल ही शायद उसका ठिकाना हो गया।