बीड़ा उठाना  Premlata tripathi

बीड़ा उठाना

Premlata tripathi

महकता स्वयं सत्य बीड़ा उठाना,
मिले कीर्ति मन में नहीं दंभ लाना।
 

तपें स्वर्ण बनकर निखरते तभी हम,
तनिक आपदा में नहीं हार जाना।
 

सुमन हर कली पर सजी ओस मोती,
उठो संग दिनकर तुम्हें पथ सजाना।
 

न शीतल हिना हो न चंदन महकता,
महकती मनुजता इसे तुम बनाना।
 

सजे कर्म निष्काम होते जहाँ वह,
नहीं अर्थ केवल हमें हो कमाना।
 

सजे प्रेम तन-मन कटे सार जीवन,
बँधे बंधनों में हमें वे निभाना।

छंद - वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी- 122 122 122 122
समान्त - आना, अपदान्त

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