छोड़ दूँगी वह गली  RATNA PANDEY

छोड़ दूँगी वह गली

RATNA PANDEY

औरत ने ही औरत का ना साथ निभाया,
जान कर कि कोख में बेटी है,
एक औरत ने ही गर्भ में उसे
मरवाने का आदेश थमाया।
 

बहुत चीखी बहुत रोई माँ, कि मत मारो,
मैं अकेली ही उसको पाल लूँगी,
ना बोझ बनने दूँगी कभी,
जीवन उसका मैं ही सँवार लूँगी।
 

बड़ी मिन्नतें की, मगर कानों में
किसी के आवाज़ ना गूँजी,
विडम्बना ये कैसी हुई,
एक औरत ही औरत की दुश्मन हुई।
 

आँखों में पानी माँ की भर-भर कर आता था,
नन्हीं जान के खोने का डर हर दम सताता था,
ख़ून से उसे वह अपने सींच रही थी,
दुनिया में लाने के हसीन सपने देख रही थी।
 

दूँगी जनम मैं इस परी को,
सोच कर घर से वह निकल पड़ी,
दृढ़ निश्चय कर लिया उसने,
कि छोड़ दूँगी वह गली।
 

जहाँ भगवान के आदेश को
अस्वीकार करते हैं,
और गर्भ में ही एक नन्हीं सी
जान का अंतिम संस्कार करते हैं।
 

नारी हूँ नहीं कमज़ोर मैं इतनी कि
अपने अंश को मैं ना पाल पाऊँ,
देकर जनम अपने संस्कारों से
मैं उसे प्लावित ना कर पाऊँ।
 

बनेगी परिवार का गौरव वह कि
सब उस पर नाज़ कर सकें,
उसका मान कर सकें और
ऐसी हीन धारणा का
हृदय से त्याग कर सकें।
 

नारी हूँ नारी की जान बचाऊँगी,
किसी भी हद से मैं गुज़र जाऊँगी।

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