फन कुचल दो शशांक दुबे
फन कुचल दो
शशांक दुबेघाटी के सपोलों को यूँ,
गद्दारों विषैलों को यूँ,
निर्मम मृत्यु देकर
सबक तो सिखाईये।
नापाकी सपेरे को भी,
आतंक के डेरे को भी,
अपनी चौड़ी छाती का
प्रभाव तो दिखाइए।
तेरह बेटे खो लिया है,
पांच साल सो लिया है,
कुंभकर्णी नींद से
अब तो जाग जाइये।
छोड़ डिप्लोमेसी सारी,
उसकी ऐसी-तैसी मारी,
एक बार युद्ध का
बिगुल तो बजाइये।
राष्ट्र यही बोलता है,
खून ऐसा ख़ौलता है,
राष्ट्रवादियों सा फिर
जिगर भी दिखाइए।
सीमा पर जो खड़े हैं,
देशहित जो लड़े हैं,
मनोबल सैनिकों का
कुछ तो बढाईये।
ज़हरीले फन वाले,
पाकी सब नाग काले,
कृष्ण बन कालिया
का फन तो दबाईये।
बात अब आन की है,
देश के सम्मान की है,
छाती अब अपनी
छप्पन तो फुलाइये।
