देशभक्ति Abhilasha Kamlesh Singhal
देशभक्ति
Abhilasha Kamlesh Singhalकण-कण लहू के मिलाकर,
रूह को ज्वाला के ताप में जलाकर,
तूने ही तो मुझे बनाया था
अपने हृदय के किसी कोने में बिठाकर।
उसी हृदय से तेरी रगों में मैं बहती थी,
घावों को तेरे सहलाकर
अक्सर मैं यह कहती थी,
"तप करके रोष में जो बहा नहीं
वो खून नहीं पानी है,
यह देख काँप ना उठे जो
वो रूह भी बेगानी है।"
कभी लहू तो कभी बन अश्रुधारा,
आक्रोश में तप रहे
तेरे को मैंने निखारा,
फिर क्यों?
रोशन कर तेरा सवेरा
बन के रात मैं रह गई,
क्यों तेरी कश्ती बन मैं
उसी अँधेरे में बह गई।
कहने को तो मैं हर दिल में बसती हूँ,
फिर क्यों अक्सर में तन्हाई में सिसकती हूँ,
पहचाना मुझे?
हाँ मैं वही पल में याद कर भूल दी जाने वाली
"देशभक्ति हूँ।"