धूप Arpit Gupta
धूप
Arpit Guptaपीली-पीली सोन्धी-सोन्धी सर्दियों की धूप तुम,
घुलती जाती हो बदन में थोड़ी-थोड़ी ख़ूब तुम।
धीमी होती हो तो आता है बड़ा आनंद सा,
तेज़ होती हो दिखा देती हो असली रूप तुम।
बादलों को चीरकर फैलाती अपनी रोशनी,
चाहती हो तुम बिखरना हो बड़ी मजबूर तुम।
तेज़ सूरज हो उठा है देख तेरी स्थिति,
सूर्य सा तेजस्वी हूँ मैं मेरी पीली धूप तुम।