कलयुग के इस देश में SANTOSH GUPTA
कलयुग के इस देश में
SANTOSH GUPTAरामायण के इस देश में महाभारत हो रहा है,
आस्था तो बढ़ रही पर राम खो रहा है।
रामभक्त तो बढ़ रहे पर हनुमान खो रहा है,
मंदिरों की होड़ है पर दिलो में स्थान खो रहा है।
बस एक ही मंदिर की कमी है
जिसके लिए हिंदुस्तान रो रहा है,
देखो इंसानों की इंसानियत
खुद में ही फूट का बीज बो रहा है।
मंदिर को सरकार बना रहा है
या सरकार को मंदिर बना रहा है,
लोकतंत्र अब बदल रहा है
भक्ततंत्र से अब देश चल रहा है।
राजनीति के जाल में रामायण फँस रहा है,
राम की हालत देख दशानन हँस रहा है।
सोता देख जनता को
अब कुम्भकरण भी तरस रहा है।
जिस तरह ये आवाम सो रहा है
अब राम रो रहा है,
आयोद्धा ही था उनका जन्मस्थल
अब उनको भी वहम हो रहा है।
कलयुग के इस भारत से दशरथ निराश हो रहा है,
राजनैतिक मंथरा का हर कोई दास हो रहा है।
कुर्सी की लड़ाई मे सीतापति बेघर है,
मर्यादापुरुषोत्तम को फिर वनवास हो रहा है।
रामभक्त कहलाने का सबको अभिमान हो रहा है,
हृदयों में बेशक वह गुमनाम हो रहा है।
आधुनिक भारत है यह,
यहाँ भक्ति नहीं सत्ता संग्राम हो रहा है।
भक्तों को मंदिर चाहिए पर विकास रो रहा है,
एक ऐसे भी लोकतंत्र का विन्यास हो रहा है।
ईश्वर को अधिकार दिलाने का
मानव द्वारा अब प्रयास हो रहा है।
रघुकुल का पावन देश खुद से ही बेईमान हो रहा है,
आडम्बर देख इंसानों का वह राम रो रहा है।
जिसको रहना था व्यक्तित्व में
उसको पत्थरों में रखने का इंतजाम हो रहा है।