अंदर का मच्छर SANTOSH GUPTA
अंदर का मच्छर
SANTOSH GUPTAलगाकर मच्छरदानी सोचा चैन की नींद लूँगा,
मच्छरों को हराकर ही मैं दम लूँगा।
सोचा अब थोड़ी शांति होगी
इस भ्रांति में मैं सोने चला,
नींद की गोदी में होने चला।
जैसे ही थोड़ी नींद लगी
कानों के पास एक गूँज हुई,
चुभता हुआ कुछ महसूस हुआ,
कोई मच्छर था अंदर भी शायद
जो काटकर बड़ा खुश हुआ।
अंदर के उस मच्छर ने बेशक मुझे परेशान किया,
काटकर भीतर ही भीतर खुद पर बड़ा गुमान किया,
मुसलसल रात भर वह काटता ही रहा,
थोड़ा सोता तो थोड़ा जागता ही रहा।
अंदर के मच्छर से जूझता ही रहा,
रात भर उसे ढूंढ़ता ही रहा,
मच्छरदानी के भीतर मेरा
दुश्मन से हार हो गया,
बाहर के मच्छरों से मैं सुरक्षित तो था,
पर अंदर के मच्छर का शिकार हो गया।