तुम्हारा दूर जाना SANTOSH GUPTA
तुम्हारा दूर जाना
SANTOSH GUPTAतुम्हारा दूर जाना कूछ बयां करता है
सुनता हूँ अक्सर ये क्या कहता है,
जब नहीं थे तुम ज़िन्दगी में मेरे
जब नहीं थे तुमने फूल बिखेरे,
उन दिनो में क्यों नहीं जा पाता हूँ,
बिन तुम्हारे क्यों नहीं अब रह पाता हूँ।
छोड़कर मुझे तुम्हारा जाना
रोक कर साँसो को ज़िन्दगी को आजमाना,
चलती साँसो सी एक अहसास हो तुम,
अहमियत रुकने पर है और जब न पास हो तुम।
पायल तुम्हारी, आहट तुम्हारी,
चेहरा तुम्हारा, मुस्कराहट तुम्हारी,
स्पर्श तुम्हारा, महक तुम्हारी,
अंदाज़ तुम्हारा, चहक तुम्हारी,
इनके बिना अब जीवन बेरस लगता है,
करता हूँ फिर भी इंतजार अब बस लगता है।